गुरुवार, 21 मई 2020

बाजार का बाजारूपन

एक बार की बात बताता है,मेरे मित्र बाजार गए थे वहां से उन्हें छोटी सी समान लेनी थी एक मामूली समान जिसे लेने पर उनके एक थेले ही भरते लेकिन जब वह लौटे तब उनके साथ थेलों की भंडार थी वे कई सामानों के साथ बाजार से लौटे। मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि यह तो मामूली चीज है ,यह तो महिमा है जिसे मैं लेकर गया था। उनकी कहने का तात्पर्य यह था कि उन्होंने अपने साथ अपनी पत्नी को लेकर गया था और यही उनकी महिमा थी ‌।उनके साथ जाने की वजह से ही इतने सामानों की ता ता लग गई।
 आज के इस काल में और आदिकाल से इस विषय में पति से पत्नी की ही प्रमुखता प्रमाणित की गई है यह एक व्यक्तित्व का बात नहीं है ,बल्कि यह स्त्रियों का प्रश्न है।
एक और ऐसी महिमा है जिस महिमा के कारण आदमी को अपने अंदर गौरव महसूस होता है वह महिमा पैसों की महिमा है गरिमा है। यूं कहूं तो आज पैसे पैसे एक एनर्जी के समान है जो आदमी को हमेशा उत्साहित प्रोत्साहित करते रहता है। 
मैंने अपने मन में कहा ठीक है मैं भी एक बार अपने को उस चकाचौंध की ओर लेकर चलता हूं और उस चकाचौंध को हराकर दिखाता हूं। धीरे से बगल से आवाज आई सुनते हो ! यह सामान ले लो मात्र 5000 के है एक बार तो लेकर देखो साल और साल टिकेगी।
मैंने कहा मुझे तो जरूरत नहीं है इस चीज की!
उसने कहा देखने में क्या हर्ज है देख लो लेना हो तो लेना नहीं तो चला जाना
मैंने उस वस्तु को देखा परखा समझा उसके बाद मेरे मन में कहीं एक लालसा जगने लगी कि उस वस्तु की जरूरत शायद मेरे घर में मेरे पास है लेकिन वह एक विलासिता थी मेरे मन का भ्रम था मैंने अपने आप को थोड़ा समझाया और उसे नजरअंदाज करते हुए आगे बढ़ गया।
आगेे बढ़ा और वस्तुओं को देखा काफी स्टोर का अनुमोदन करते मैंनेे देखा कि कई लोग कई वस्तुओं  को बिना मतलब खरीद रहा है ऐसे वस्तुओंं को लेेेे रहे हैं जैसेे कि वह वस्तु बाद  में बाजार में आएंगे नहीं।
रात के समय वापस लौटते समय मैंने देखा कि कई लोग अपने साथ कई तरह के वास्तु ले जा रहे हैं। लेकिन ऐसे भी लोग थे जो अपने साथ कुछ नहीं ले जा रहे थे। वहा नंगे पांव अपने घर की ओर जा रहे थे।उनके हाथों में न तो थेले थे ना समान ।
इस बात से मुझे यह आभास हुआ कि लोगों के पास जब धन रहता है तभी  उनकी जरूरतें बढ़ते जाती हैजिनके पास खाने के लिए दो वक्त की रोटी नहीं रहती वह उन सामानों को लेकर भी क्या करेंगे ।
इस बात को मैंने रात में अपने घर आकर विचार किया तो मैं इस नतीजे तक पहुंचा कि वैसे ही लोगों की जरूरत है बढ़ती जाती है जिनके पास पैसों के भंडार हैं।


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