धारा को ना धर सका।।
जब धरा ने मुंह मोड़ा।
उसने तुझको कहीं का ना छोड़ा।।
कहां गई तेरी मुख की हंसी।
कहां गई तेरे सुख की घड़ी।।
छा गई काली घटा।
कैसे कटे यह दिन की छटा।।
गड़ गड़ाते बादलों की चमक।
टप टपाते बूंदों की दमक।।
छा रही हरयाली चारो तरफ।
बिखेरे पंख झूमते ,मोर मोरनी के संग।।
इक्छा प्राप्ति के सपने पर।
बिखर रहे हैं घर परिवार।।
कहां गई तेरी मुख की हंसी।
कहां गई तेरी सुख की घड़ी।।